fool the badam bhi tha

फूल थे बादल भी था और वो हसीं सूरत भी थी
दिल में लेकिन और ही इक शक्ल की हसरत भी थी

जो हवा में घर बनाए काश कोई देखता
दश्त में रहते थे पर ता’मीर की आदत भी थी

कह गया मैं सामने उस के जो दिल का मुद्दआ’
कुछ तो मौसम भी अजब था कुछ मिरी हिम्मत भी थी

अजनबी शहरों में रहते उम्र सारी कट गई
गो ज़रा से फ़ासले पर घर की हर राहत भी थी

क्या क़यामत है ‘मुनीर’ अब याद भी आते नहीं
वो पुराने आश्ना जिन से हमें उल्फ़त भी थी