हर तरफ़ यार का तमाशा है
उस के दीदार का तमाशा है
इश्क़ और अक़्ल में हुई है शर्त
जीत और हार का तमाशा है
ख़ल्वत-ए-इंतिज़ार में उस की
दर-ओ-दीवार का तमाशा है
सीना-ए-दाग़ दाग़ में मेरे
सहन-ए-गुलज़ार का तमाशा है
है शिकार-ए-कमंद-ए-इश्क़ ‘सिराज’
इस गले हार का तमाशा है