ग़ज़ल के सबसे अच्छे शेर को शाहे बैत कहा जाता है। ग़ज़लों के ऐसे संग्रह को दीवान कहते हैं Love Ghazal जिसमें हर हर्फ से कम से कम एक ग़ज़ल अवश्य हो। उर्दू का पहला दीवान शायर कुली कुतुबशाह है।
तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए
मैं ज़हर खा रही थी कि तुम याद आ गए
कल मेरी एक प्यारी सहेली किताब में
इक ख़त छुपा रही थी कि तुम याद आ गए
उस वक़्त रात-रानी मिरे सूने सहन में
ख़ुशबू लुटा रही थी कि तुम याद आ गए
ईमान जानिए कि इसे कुफ़्र जानिए
मैं सर झुका रही थी कि तुम याद आ गए
Love Ghazal Ka Mazmoon
भाषा का नाम रेख़्ता (गिरा-पड़ा) पड़ा। वली दकनी, सिराज दाउद आदि इसी प्रथा के शायर थे जिन्होंने एक तरह से अमीर ख़ुसरो (१३१० इस्वी) की परंपरा को आगे बढ़ाया। दक्किनी उर्दू के ग़ज़लकारों ने अरबी फारसी के बदले भारतीय प्रतीकों, काव्य रूढ़ियों, एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को लेकर रचना की।
कल शाम छत पे मीर-तक़ी-‘मीर’ की ग़ज़ल
मैं गुनगुना रही थी कि तुम याद आ गए
‘अंजुम’ तुम्हारा शहर जिधर है उसी तरफ़
इक रेल जा रही थी कि तुम याद आ गए
ग़ज़ल एक ही बहर और वज़न के अनुसार लिखे गए शेरों का समूह है। इसके पहले शेर को मतला कहते हैं। ग़ज़ल के अंतिम शेर को मक़्ता कहते हैं। मक़्ते में सामान्यतः शायर अपना नाम रखता है। आम तौर पर ग़ज़लों में शेरों की विषम संख्या होती है