Mirza Ghalib Hindi Shayari उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे। इनको उर्दू भाषा का सर्वकालिक महान शायर माना जाता है और फ़ारसी कविता के प्रवाह को हिन्दुस्तानी जबान में लोकप्रिय करवाने का श्रेय भी इनको दिया जाता है। यद्दपि इससे पहले के वर्षो में मीर तक़ी “मीर” भी इसी वजह से जाने जाता है।
आबरू क्या ख़ाक उस गुल की कि गुलशन में नहीं
है गरेबाँ नंग-ए-पैराहन जो दामन में नहीं
ज़ोफ़ से ऐ गिर्या कुछ बाक़ी मिरे तन में नहीं
रंग हो कर उड़ गया जो ख़ूँ कि दामन में नहीं
हो गए हैं जमा अजज़ा-ए-निगाह-ए-आफ़ताब
ज़र्रे उस के घर की दीवारों के रौज़न में नहीं
आपके दीदार से इक बिजली सी कूंद गई तो क्या हुआ, Mirza Ghalib Hindi Shayari मैं तो इससे ख़ौफ़ज़दा नहीं हुआ। मैं आपके दीदार के साथ ही आपसे बात करने का भी आरज़ूमंद था। आपको मुझसे बात भी करना चाहिए थी।
क़तरा क़तरा इक हयूला है नए नासूर का
ख़ूँ भी ज़ौक़-ए-दर्द से फ़ारिग़ मिरे तन में नहीं
ले गई साक़ी की नख़वत क़ुल्ज़ुम-आशामी मिरी
मौज-ए-मय की आज रग मीना की गर्दन में नहीं
हो फ़िशार-ए-ज़ोफ़ में क्या ना-तवानी की नुमूद
क़द के झुकने की भी गुंजाइश मिरे तन में नहीं
थी वतन में शान क्या ‘ग़ालिब’ कि हो ग़ुर्बत में क़द्र
बे-तकल्लुफ़ हूँ वो मुश्त-ए-ख़स कि गुलख़न में नहीं