Allama Iqbal Hindi Poetry मोहम्मद इक़बाल को अलामा इक़बाल (विद्वान इक़बाल), मुफ्फकिर-ए-पाकिस्तान (पाकिस्तान का विचारक), शायर-ए-मशरीक़ (पूरब का शायर) और हकीम-उल-उम्मत (उम्मा का विद्वान) के नाम से भी जाना जाता है।
नाला है बुलबुल-ए-शोरीदा तिरा ख़ाम अभी
अपने सीने में इसे और ज़रा थाम अभी
पुख़्ता होती है अगर मस्लहत-अंदेश हो अक़्ल
इश्क़ हो मस्लहत-अंदेश तो है ख़ाम अभी
बे-ख़तर कूद पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़
अक़्ल है महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम अभी
इश्क़ फ़र्मूदा-ए-क़ासिद से सुबुक-गाम-ए-अमल
अक़्ल समझी ही नहीं म’अनी-ए-पैग़ाम अभी
इकबाल ने जिन्ना को लंदन में अपने आत्म निर्वासन को समाप्त करने और भारत की राजनीति में फिर से प्रवेश करने के लिए प्रेरित किया था । Allama Iqbal Hindi Poetry अकबर एस अहमद के अनुसार, अंतिम वर्षों में ,१९३८ में उनकी मृत्यु से पहले, इकबाल धीरे-धीरे जिन्ना को अपने विचार अनुसार परिवर्तित करने में सफल रहे.
शेवा-ए-इश्क़ है आज़ादी ओ दहर-आशेबी
तू है ज़ुन्नारी-ए-बुत-ख़ाना-ए-अय्याम अभी
उज़्र-ए-परहेज़ पे कहता है बिगड़ कर साक़ी
है तिरे दिल में वही काविश-ए-अंजाम अभी
सई-ए-पैहम है तराज़ू-कम-ओ-कैफ़-ए-हयात
तेरी मीज़ाँ है शुमार-ए-सहर-ओ-शाम अभी
अब्र-ए-नैसाँ ये तुनुक-बख़्शी-ए-शबनम कब तक
मेरे कोहसार के लाले हैं तही-जाम अभी
बादा-गर्दान-ए-अजम वो अरबी मेरी शराब
मिरे साग़र से झिजकते हैं मय-आशाम अभी
ख़बर ‘इक़बाल’ की लाई है गुलिस्ताँ से नसीम
नौ-गिरफ़्तार फड़कता है तह-ए-दाम अभी