shayri

आँखों का एहतराम तो उनकी नमी पे है

अब छोड़ दिया फैसला जो है तुमी पे है।

शराफत का आसमान बड़ी दूर तलक है

बादल मगर गुनाह का आना जमीं पे है।

मदमस्त जवानी है मगर याद रहे ये

दारोमदार मुल्क का सारा हमीं पे है।