बेगमा मैं जो बड़ी हूँ तो भला तुझ को क्या
पहने पोशाक ज़री हूँ तो भला तुझ को क्या
तू तो ओकटी नहीं जाएगी मिरे ऐबों में
अरी मैं ऐब-भरी हूँ तो भला तुझ को क्या
अपनी बिजली की सी तो छब की ख़बर ले बाजी
गर्म मैं गो कि ज़री हूँ तो भला तुझ को क्या
किसी का बाग़ तो लूटा नहीं है मैं अपनी
गोद फूलों से भरी हूँ तो भला तुझ को क्या
नए धानों की सी खेती की तरह से ‘इंशा’
डह-डही और हरी हूँ तो भला तुझ को क्या