ख़ुश हूँ कि ज़िंदगी ने कोई काम कर दिया
मुझ को सुपुर्द-ए-गर्दिश-ए-अय्याम कर दिया
साक़ी सियाह-ख़ाना-ए-हस्ती में देखना
रौशन चराग़ किस ने सर-ए-शाम कर दिया
पहले मिरे ख़ुलूस को देते रहे फ़रेब
आख़िर मिरे ख़ुलूस को बदनाम कर दिया
कितनी दुआएँ दूँ तिरी ज़ुल्फ़-ए-दराज़ को
कितना वसीअ सिलसिला-ए-दाम कर दिया
वो चश्म-ए-मस्त कितनी ख़बर-दार थी ‘अदम’
ख़ुद होश में रही हमें बदनाम कर दिया