में ग़श में हूँ मुझे इतना नहीं होश
तसव्वुर है तिरा या तू हम-आग़ोश
जो नालों की कभी वहशत ने ठानी
पुकारा ज़ब्त बस ख़ामोश ख़ामोश
किसे हो इम्तियाज़-ए-जल्वा-ए-यार
हमें तो आप ही अपना नहीं होश
उठा रक्खा है इक तूफ़ान तू ने
अरे क़तरे तिरा अल्लाह-रे जोश
मैं ऐसी याद के क़ुर्बान जाऊँ
किया जिस ने दो-आलम को फ़रामोश
है बेगानों से ख़ाली ख़ल्वत-ए-राज़
चले जाएँ न अब आएँ मिरे होश
करो रिंदो गुनाह-ए-मय-परस्ती
कि साक़ी है अता-पाश ओ ख़ता-पोश
तिरे जल्वे को मूसा देखते क्या
नक़ाब उठने से पहले उड़ गए होश
करम भी उस का मुझ पर है सितम भी
कि पहलू में है ज़ालिम और रू-पोश
पियो तो ख़ुम के ख़ुम पी जाओ ‘बेदम’
अरे मय-नोश हो तुम या बला-नोश