यह कौन ज़ी वक़ार है, बला का शह सवार है
के है हज़ारों कातिलों के सामने डटा हुआ
यह बिल यक़ीं हुसैन है नबी का नूर ए ऐन है
हुसैन है हुसैन है नबी का नूर ए ऐन है
यह कौन हक़-परस्त है, मय-ए रज़ा ए मस्त है
के जिसके सामने कोई बुलंद है न पस्त है
उधर हज़ार घात है, मगर अजीब बात है
के एक से हज़ार का भी हौसला शिकस्त है
यह बिल यक़ीं हुसैन है नबी का नूर ए ऐन है
हुसैन है हुसैन है नबी का नूर ए ऐन है
हुसैन जिसकी सदा ला इलाहा इलल्लाह
हुसैन जिसकी अदा ला इलाहा इलल्लाह
हुसैन जिसकी सना ला इलाहा इलल्लाह
हुसैन जिसकी दुआ ला इलाहा इलल्लाह
जो दहकती आग के शोलों पे सोया वो हुसैन
जिसने अपने ख़ून से आ़लम को धोया वो हुसैन
जो जवां बेटे की मैय्यत पर न रोया वो हुसैन
जिसने सब कुछ खो के फिर भी कुछ न खोया वो हुसैन
रस्म-ए उश्शाक़ यही है के वफ़ा करते हैं
य़ानी हर हाल में हक़ अपना अदा करते हैं
हौसला हज़रत-ए शब्बीर का अल्लाह अल्लाह
सर जुदा होता है और शुक्र-ए ख़ुदा करते हैं
दिलावरी में फ़र्द है बड़ा ही शेर मर्द है
के जिसके दबदबे से रंग दुश्मनों का ज़र्द है
हबीब ए मुस्तफा है ये मुजाहिद ए ख़ुदा है ये
जभी तो इसके सामने यह फौज गर्द गर्द है
यह बिल यक़ीं हुसैन है नबी का नूर ए ऐन है
हुसैन है हुसैन है नबी का नूर ए ऐन है
ईमान की तौक़ीर कहा जाता है
क़ुरआन की तफ़्सीर कहा जाता है
बातिल के सामने जो कभी झुक न सकी
उस ज़ात को शब्बीर कहा जाता है
उधर सिपाह-ए शाम है हज़ार इन्तिज़ाम
उधर हैं दुश्मनान-ए दीं इधर फ़क़त इमाम है
मगर अ़जीब शान है ग़जब की आन-बान है
के जिस तरफ़ उठी है तेग़ बस ख़ुदा का नाम है
यह जिसकी एक ज़र्ब से, कमाल ए फ़न-ए ह़र्ब से
कई शकी गिरे हुए तड़प रहे हैं कर्ब से
गजब है तेग़-ए दो सिरा के एक एक वार पर
उठी सदा ए अलअमा ज़बान-ए शर्क़ ओ ग़र्ब से
अ़बा भी तार तार है, तो जिस्म भी फ़गार है
ज़मीन भी तपी हुई, फलक भी शोला बार है
मगर ये मर्द-ए तेग़ज़न, ये सफ़ शिकन, फ़लक फ़िगन
कमाल-ए सब्र ओ तन दिही से मह्व-ए कारज़ार है