कोई सलीका है आरज़ू का, न बन्दगी मेरी बन्दगी है
ये सब तुम्हारा करम है आक़ा के बात अब तक बनी हुई है
अता किया मुझको दर्दे-उल्फ़त, कहां थी ये पुर-ख़ता की क़िस्मत
मैं इस करम के कहां था क़ाबिल, हुज़ूर की बन्दा परवरी है
इस करम का करूँ शुक्र कैसे अदा, जो करम मुझ पे मेरे नबी कर दिया
मैं सजाता हूँ सरकार की महफिलें, मुझ को हर ग़म से रब ने बरी कर दिया
ज़िक्रे-सरकार की हैं बड़ी बरकतें, मिल गई राहतें, अज़मतें, रिफ़अतें
कोई सिद्दिक़, फ़ारूक़, उस्मां हुवे और किसीको नबी ने अली कर दिया
तजल्लियों के कफील तुम हो, मुरादे-क़ल्बे ख़लील तुम हो
ख़ुदा की रोशन दलील तुम हो, ये सब तुम्हारी ही रोशनी है
किसी का एहसान क्यूं उठाएं, किसी को हालात क्यूं बताएं
तुम्हीं से मांगेंगे तुम ही दोगे, तुम्हारे ही दर से लो लगी है
अमल की मेरे असास क्या है, बजुज़ नदामत के पास क्या है
रहे सलामत बस आप की निस्बत, मेरा तो बस आसरा यहीं है
जितना दिया सरकार ने मुझ को उतनी मेरी औक़ात नहीं
ये तो करम है उनका वरना मुझ में तो ऐसी बात नहीं
इश्क़े-शहे-बतहा से पेहले मुफ़लिसो-ख़स्ताहाल था मैं
नामे-मुहम्मद के मैं क़ुरबां, अब वो मेरे हालात नहीं
गौर तो कर सरकार की तुझ पर कितनी ख़ास इनायत है
कौसर तू है इनका सनाख्वां ये मामूली बात नहीं
बशीर कहिये, नज़ीर कहिये, इन्हें सिराजे-मुनीर कहिये
जो सर बसर है कलामे-रब्बी, वो मेरे आक़ा की ज़िन्दगी है
यहीं है ख़ालिद असासे-रहमत, यहीं है ख़ालिद बिनाए-अज़मत
नबी का इरफ़ान बन्दग़ी है, नबी का इरफ़ान ज़िन्दगी है