Allama Iqbal Poetry मोहम्मद इक़बाल अविभाजित भारत के प्रसिद्ध कवि, नेता और दार्शनिक थे। उर्दू और फ़ारसी में इनकी शायरी को आधुनिक काल की सर्वश्रेष्ठ शायरी में गिना जाता है।
निगाह-ए-फ़क़्र में शान-ए-सिकंदरी क्या है
ख़िराज की जो गदा हो वो क़ैसरी क्या है
बुतों से तुझ को उमीदें ख़ुदा से नौमीदी
मुझे बता तो सही और काफ़िरी क्या है
फ़लक ने उन को अता की है ख़्वाजगी कि जिन्हें
ख़बर नहीं रविश-ए-बंदा-परवरी क्या है
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का
न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है
मोहम्मद इक़बाल को अलामा इक़बाल (विद्वान इक़बाल), मुफ्फकिर-ए-पाकिस्तान (पाकिस्तान का विचारक), Allama Iqbal Poetry शायर-ए-मशरीक़ (पूरब का शायर) और हकीम-उल-उम्मत (उम्मा का विद्वान) के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें पाकिस्तान में राष्ट्रकवि माना जाता है।
इसी ख़ता से इताब-ए-मुलूक है मुझ पर
कि जानता हूँ मआल-ए-सिकंदरी क्या है
किसे नहीं है तमन्ना-ए-सरवरी लेकिन
ख़ुदी की मौत हो जिस में वो सरवरी क्या है
ख़ुश आ गई है जहाँ को क़लंदरी मेरी
वगरना शेर मिरा क्या है शाइरी क्या है
इक़बाल ब्रितानी सरकार के मुखर आलोचक थे, लेकिन 1922 में उन्होंने नाइटहुड की उपाधि स्वीकार कर सभी को हैरान कर दिया
इक़बाल में बदलाव
अपनी शुरुआती कविताओं में इक़बाल अखंड और स्वतंत्र भारत की बात किया करते थे, जहाँ हिंदू और मुसलमान साथ-साथ रह सकेंगे, लेकिन भाईचारे और बहुलवाद का ये विश्वास जल्द ही एकेश्वरवाद और व्यक्तिवाद में बदलने लगा.