जुनूँ कम जुस्तुजू कम तिश्नगी कम
नज़र आए न क्यूँ दरिया भी शबनम
ब-हम्दिल्लाह तू है जिस का हमदम
कहाँ उस क़ल्ब में गुंजाइश-ए-ग़म
तवज्जोह बे-निहायत और नज़र कम
ख़ुशा ये इल्तिफ़ात-ए-हुस्न-ए-बरहम
मिरी आँखों ने देखा है वो आलम
कि हर आलम है लग़्ज़िश-हा-ए-पैहम
ख़ता क्यूँकर न होती आफ़ियत-सोज़
कि जन्नत ही न थी मेराज-ए-आदम
ख़ुशा ये निस्बत-ए-हुस्न-ओ-मोहब्बत
जहाँ बैठे नज़र आए हमीं हम
वो इक हुस्न-ए-सरापा अल्लाह अल्लाह
कि जिस की हर अदा आलम ही आलम
कहाँ पहलू-ए-ख़ुर्शीद-ए-जहाँ-ताब
कहाँ इक नाज़नीं दोशीज़ा शबनम
मसर्रत ज़िंदगी का दूसरा नाम
मसर्रत की तमन्ना मुस्तक़िल ग़म