Farman Sheikh Saadi

वह आदमी वास्‍तव में बुद्धिमान है जो क्रोध में भी गलत बात मुंह से नहीं निकालता। —शैख़ सादी

लोभी को पूरा संसार मिल जाए तो भी वह, भूखा रहता है, लेकिन संतोषी का पेट, एक रोटी से ही भर जाता है। —शैख़ सादी

ग़रीबों के समान विनम्र अमीर और अमीरों के समान उदार ग़रीब ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं। —शैख़ सादी

घमंड करना जाहिलों का काम है। —शैख़ सादी

जो नसीहतें नहीं सुनता, उसे लानत-मलामत सुनने का सुख होता है। —शैख़ सादी

बुरे आदमी के साथ भी भलाई करनी चाहिए – कुत्ते को रोटी का एक टुकड़ा डालकर उसका मुंह बन्द करना ही अच्छा है। —शैख़ सादी

खुदा एक दरवाजा बन्द करने से पहले दूसरा खोल देता है, उसे प्रयत्न कर देखो। —शैख़ सादी

धैर्य रखें, सभी कार्य सरल होने से पहले कठिन ही दिखाई देते हैं। —शैख़ सादी

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Urdu Quotes Sheikh Saadi

सुन्दरता बिना श्रृंगार के मन मोहती है | —शैख़ सादी

जो असहायों पर दया नहीं करता, उसे शक्तिशालियों के अत्याचार सहने पड़ते हैं। —शैख़ सादी

गुरु की डांट-डपट पिता के प्यार से अच्छी है | —शैख़ सादी

अगर इन्सान सुख-दुःख की चिंता से ऊपर उठ जाए, तो आसमान की ऊंचाई भी उसके पैरों तले आ जाय। —शैख़ सादी

इंसान अगर लोभ को ठुकरा दे तो बादशाह से भी ऊंचा दर्जा हासिल कर सकता है, क्‍योंकि संतोष ही इंसान का माथा हमेशा ऊंचा रख सकता है। —शैख़ सादी

अज्ञानी आदमी के लिये खामोशी से बढ़कर कोई चीज नहीं, और अगर उसमें यह समझने की बुद्धि है तो वह अज्ञानी नहीं रहेगा। —शैख़ सादी

वाणी मधुर हो तो सब कुछ वश में हो जाता है, अन्‍यथा सब शत्रु बन जाते हैं। —शैख़ सादी

 

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Hindi Quotes Sheikh Saadi

संसार में लालची आँखों को सब्र ही भर सकता है या फिर कब्र की मिट्टी —शैख़ सादी

“ऐ सन्तोष! मुझे दौलतमंद बना दें, क्योंकि संसार की कोई दौलत तुझसे बढ़कर नहीं है।” —शैख़ सादी

अल्पाहार करने वाला आसानी से तकलीफों को सहन कर लेता है। पर जिसने सिवाय शरीर पालने के और कुछ किया ही नहीं, उस पर सख्ती की जाती है तो वह मर जाता है।”  —शैख़ सादी

चरित्र-हीन मूर्ख-चरित्र-हीन विद्वान् से अच्छा है, क्योंकि मूर्ख तो अन्धा होने के कारण पथभ्रष्ट हुआ, पर विद्वान् दो आँखें रखते हुए भी कुएं में गिरा।—शैख़ सादी

अपने पड़ौसी भिक्षुक से आग मत माँग, उसकी चिमनी से जो धुँआ तू निकलता देखता है, वह लौकिक आग का नहीं बल्कि उसके हृदय में सुलगी हुई दुख की आग का है।—शैख़ सादी

यदि तेरा मृत्यु-समय उपस्थित नहीं हुआ है तो शेर या चीते के मुँह में पहुँच कर भी तू जिन्दा रह सकता है।—शैख़ सादी

जो दूसरे को देखकर जलता है, उस पर जलने की जरूरत नहीं, क्योंकि दाह-रूपी शत्रु उसके पीछे लग रहा है। उससे शत्रुता करने की हमें फिर क्या जरूरत है।—शैख़ सादी

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Quotes Sheikh Saadi

सब कुछ लुट जाने के बाद भी भविष्य बाकी रहता है।     —शेख सादी
निराशावाद से कभी युद्ध नहीं जीता जाता । — शेख सादी

अच्छी आदतों की मालिक नेक और पाकदामन औरत किसी फ़क़ीर के घर में भी हो तो उसे बादशाह बना देती है। —शैख़ सादी

ख़ुदा एक दरवाजा बंद करने से पहले दूसरा खोल देता है ,उसे आजमा कर देखो —शैख़ सादी

बेवकूफ इन्‍सान बेवकूफी ही सिखाएगा —शैख़ सादी

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Sheikh Saadi Urdu Quotes

मेरे पास वक़्त नहीं है उन लोगों से नफरत करने का, जो मुझसे नफरत करते हैं,
क्यों की, में मसरूफ रहता हूँ उन लोगों में जो मुझ से मोहब्बत करतें हैं।

जब मुझे पता चला की मखमल के बिस्तर और ज़मीन पर सोने वालों के ख्वाब एक जैसे
और क़बर भी एक जैसी होती है तो मुझे अल्लाह के इंसाफ पर यकीन आ गया।

खाक से बने इंसान में अगर खाक्सारी (विनम्रता) ना हो तो उसका होना, ना होना बराबर है।

मौत और मोहब्बत दोनों ही बिन बुलाये मेहमान होते हैं, फ़र्क़ सिर्फ इतना होता है की,
मोहब्बत दिल ले जाती है और मौत धड़कन।

Sheikh Saadi — शेख सादी

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Sheikh Saadi Hindi Quotes

आसमान पर निगाह ज़रूर रखो मगर ये मत भूलो के पैर ज़मीन पर ही रखें जातें हैं।

अगर तुम अल्लाह की इबादत नहीं कर सकते तो गुनाह करना भी छोड़ दो।

दिन की रौशनी में रिज़्क़ तलाश करो, रात को उसे तलाश करो जो तुम्हें रिज़्क़ देता है।

बुरी सोहबत के दोस्तों से कांटे अच्छे हैं जो सिर्फ एक बार ज़ख्म देते हैं।

जो दुख दे उसे छोड़ दो, मगर जिसे छोड़ दो उसे दुःख ना दो।

Sheikh Saadi — शेख सादी

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Sheikh Saadi Quotes

इंसान मुस्तक़बिल को सोच के अपना हाल ज़ाया करता है,
फिर मुस्तक़बिल मैं अपना माज़ी याद कर के रोता है।

मुस्तकबिल = भविष्य, माज़ी = भूतकाल, हाल = वर्तमान

Sheikh Saadi
इंसान दौलत कमाने के लिए अपनी सेहत खो देता है
और फिर सेहत को वापिस पाने के लिए अपनी दौलत खो देता है।
जीता ऐसे है जैसे कभी मरना ही नहीं है,
और मर जाता ऐसे है जैसे कभी जिया ही नहीं।

ताज्जुब की बात है अल्लाह अपनी इतनी सारी मख्लूक़ में से मुझे नहीं भूलता
और मेरा तो एक ही अल्लाह है में उसे भूल जाता हूँ।

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wo chandni raat aur wo mulaqat

वो चाँदनी रात और वो मुलाक़ात का आलम
क्या लुत्फ़ में गुज़रा है ग़रज़ रात का आलम

जाता हूँ जो मज्लिस में शब उस रश्क-ए-परी की
आता है नज़र मुझ को तिलिस्मात का आलम

बरसों नहीं करता तू कभू बात किसू से
मुश्ताक़ ही रहता है तिरी बात का आलम

कर मजलिस-ए-ख़ूबाँ में ज़रा सैर कि बाहम
होता है अजब उन के इशारात का आलम

दिल उस का न लोटे कभी फूलों की सफ़ा पर
शबनम को दिखा दूँ जो तिरे गात का आलम

हम लोग सिफ़ात उस की बयाँ करते हैं वर्ना
है वहम ओ ख़िरद से भी परे ज़ात का आलम

वो काली घटा और वो बिजली का चमकना
वो मेंह की बौछाड़ें वो बरसात का आलम

देखा जो शब-ए-हिज्र तो रोया मैं कि उस वक़्त
याद आया शब-ए-वस्ल के औक़ात का आलम

हम ‘मुसहफ़ी’ क़ाने हैं ब-ख़ुश्क-ओ-तर-ए-गीती
है अपने तो नज़दीक मुसावात का आलम

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Jab tak ye mohabbat mein

जब तक ये मोहब्बत में बदनाम नहीं होता
इस दिल के तईं हरगिज़ आराम नहीं होता

आलम से हमारा कुछ मज़हब ही निराला है
यानी हैं जहाँ हम वाँ इस्लाम नहीं होता

कब वादा नहीं करतीं मिलने का तिरी आँखें
किस रोज़ निगाहों में पैग़ाम नहीं होता

बाल अपने बढ़ाते हैं किस वास्ते दीवाने
क्या शहर-ए-मोहब्बत में हज्जाम नहीं होता

मिलता है कभी बोसा ने गाली ही पाते हैं
मुद्दत हुई कुछ हम को इनआम नहीं होता

साक़ी के तलत्तुफ़ ने आलम को छकाया है
लबरेज़ हमारा ही इक जाम नहीं होता

क्यूँ तीरगी-ए-ताले कुछ तू भी नहीं करती
ये रोज़-ए-मुसीबत का क्यूँ शाम नहीं होता

फिर मेरी कमंद उस ने डाले ही तुड़ाई है
वो आहु-ए-रम-ख़ुर्दा फिर राम नहीं होता

ने इश्क़ के क़ाबिल हैं ने ज़ोहद के दर्खुर हैं
ऐ ‘मुसहफ़ी’ अब हम से कुछ काम नहीं होता

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Raushan jamal-e-yar

रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम
दहका हुआ है आतिश-ए-गुल से चमन तमाम

हैरत ग़ुरूर-ए-हुस्न से शोख़ी से इज़्तिराब
दिल ने भी तेरे सीख लिए हैं चलन तमाम

अल्लाह-री जिस्म-ए-यार की ख़ूबी कि ख़ुद-ब-ख़ुद
रंगीनियों में डूब गया पैरहन तमाम

दिल ख़ून हो चुका है जिगर हो चुका है ख़ाक
बाक़ी हूँ मैं मुझे भी कर ऐ तेग़-ज़न तमाम

देखो तो चश्म-ए-यार की जादू-निगाहियाँ
बेहोश इक नज़र में हुई अंजुमन तमाम

है नाज़-ए-हुस्न से जो फ़रोज़ाँ जबीन-ए-यार
लबरेज़ आब-ए-नूर है चाह-ए-ज़क़न तमाम

नश-ओ-नुमा-ए-सब्ज़ा-ओ-गुल से बहार में
शादाबियों ने घेर लिया है चमन तमाम

उस नाज़नीं ने जब से किया है वहाँ क़याम
गुलज़ार बन गई है ज़मीन-ए-दकन तमाम

अच्छा है अहल-ए-जौर किए जाएँ सख़्तियाँ
फैलेगी यूँ ही शोरिश-ए-हुब्ब-ए-वतन तमाम

समझे हैं अहल-ए-शर्क़ को शायद क़रीब-ए-मर्ग
मग़रिब के यूँ हैं जमा ये ज़ाग़ ओ ज़ग़न तमाम

शीरीनी-ए-नसीम है सोज़-ओ-गदाज़-ए-‘मीर’
‘हसरत’ तिरे सुख़न पे है लुत्फ़-ए-सुख़न तमाम

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