अक़ाएद वहम हैं मज़हब ख़याल-ए-ख़ाम है साक़ी
अज़ल से ज़ेहन-ए-इंसाँ बस्ता-ए-औहाम है साक़ी
हक़ीक़त-आश्नाई अस्ल में गुम-कर्दा राही है
उरूस-ए-आगही परवुर्दा-ए-इब्हाम है साक़ी
मुबारक हो ज़ईफ़ी को ख़िरद की फ़लसफ़ा-रानी
जवानी बे-नियाज़-ए-इबरत-ए-अंजाम है साक़ी
हवस होगी असीर-ए-हल्क़ा-ए-नेक-ओ-बद-ए-आलम
मोहब्बत मावरा-ए-फ़िक्र-ए-नंग-ओ-नाम है साक़ी
अभी तक रास्ते के पेच-ओ-ख़म से दिल धड़कता है
मिरा ज़ौक़-ए-तलब शायद अभी तक ख़ाम है साक़ी
वहाँ भेजा गया हूँ चाक करने पर्दा-ए-शब को
जहाँ हर सुब्ह के दामन पे अक्स-ए-शाम है साक़ी
मिरे साग़र में मय है और तिरे हाथों में बरबत है
वतन की सर-ज़मीं में भूक से कोहराम है साक़ी
ज़माना बरसर-ए-पैकार है पुर-हौल शो’लों से
तिरे लब पर अभी तक नग़्मा-ए-ख़य्याम है साक़ी
अपना दिल पेश करूँ अपनी वफ़ा पेश करूँ
कुछ समझ में नहीं आता तुझे क्या पेश करूँ
तेरे मिलने की ख़ुशी में कोई नग़्मा छेड़ूँ
या तिरे दर्द-ए-जुदाई का गिला पेश करूँ
मेरे ख़्वाबों में भी तू मेरे ख़यालों में भी तू
कौन सी चीज़ तुझे तुझ से जुदा पेश करूँ
जो तिरे दिल को लुभाए वो अदा मुझ में नहीं
क्यूँ न तुझ को कोई तेरी ही अदा पेश करूँ
अहल-ए-दिल और भी हैं अहल-ए-वफ़ा और भी हैं
एक हम ही नहीं दुनिया से ख़फ़ा और भी हैं
हम पे ही ख़त्म नहीं मस्लक-ए-शोरीदा-सरीचाक-ए-दिल और भी
हैं चाक-ए-क़बा और भी हैं
क्या हुआ गर मिरे यारों की ज़बानें चुप हैं
मेरे शाहिद मिरे यारों के सिवा और भी हैं
सर सलामत है तो क्या संग-ए-मलामत की कमी
जान बाक़ी है तो पैकान-ए-क़ज़ा और भी हैं
मुंसिफ़-ए-शहर की वहदत पे न हर्फ़ आ जाए
लोग कहते हैं कि अर्बाब-ए-जफ़ा और भी हैं
Pegham saba laye hai gulzar-e-Nabi se (salla Llahu ‘alayhi wa sallam)
aaya hai bulawa mujhe darbar-e-Nabi se
her aah gaye arsh pe ye aah ki kismat
her ashk pe aik khuld hai her ashk ki qeemat
tohfa ye mila hai sarkar-e-Nabi se
ayaa hai bulawa mujhe darbare-Nabi se
darbare-Nabi se
bhaati nahi humdum mujhe jannat ki jawaani
sunta nahi zahid us mein hooron ki kahani
ulfat hai mujhe sayaa-e-deewar-e-Nabi se
ayaa hai bulawa mujhe darbare-nabi se
darbare-Nabi se
irfan ki kasak khulq ki mai sabr ka saagar
kiya lutf mila kerta hai jo dete hein sarwar
ye pooch le aake koi beemar-e-Nabi se
aaya hai bulawa mujhe darbar-e-Nabi se
pegham saba laye hai gulzar-e-Nabi se
aaya hai bulawa mujhe darbar-e-Nabi se
darbar-e-Nabi se
pegham saba laye hai gulzar-e-Nabi se
aaya hai bulawa mujhe darbar-e-Nabi se
darbar-e-Nabi se
Apnay daamane shifaat main chupaye rakhna
Mere sarkaar (salla Llahu ‘alayhi wa sallam) meri baat banaye rakhna
Maine maana ke nikamma hoon magar aap ka hoon
Is nikamme ko bi sarkar nibaye rakhna
Mere sarkaar (salla Llahu ‘alayhi wa sallam) meri baat banaye rakhna
Jab sare hashre sawaaneze pai suuraj aaye
Aapne kamli kai gunahgare pai saye rakhna
Mere sarkaar meri baat banaye rakhna
Un kai aane ki gari hai wo hain aane waaley
Mere sarkar ki mehfil ko sajaye rakhna
Mere sarkaar meri baat banaye rakhna
Zarraye khaak ko khursheed banane waey
Khaak hoon khaak ko kaadmoon sey lagaye rakhna
Mere sarkar (salla Llahu ‘alayhi wa sallam) meri baat banaye rakhna
Apney daamane shifaat main chupaye rakhna