Category: Siraj Aurangabadi
अगर कुछ होश हम रखते तो मस्ताने हुए होते
पहुँचते जा लब-ए-साक़ी कूँ पैमाने हुए होते
अबस इन शहरियों में वक़्त अपना हम किए ज़ाए
किसी मजनूँ की सोहबत बैठ दीवाने हुए होते
न रखता मैं यहाँ गर उल्फ़त-ए-लैला निगाहों कूँ
तो मजनूँ की तरह आलम में अफ़्साने हुए होते
अगर हम आश्ना होते तिरी बेगाना-ख़ूई सीं
बरा-ए-मस्लहत ज़ाहिर में बेगाने हुए होते
ज़ि-बस काफ़िर-अदायों ने चलाए संग-ए-बे-रहमी
अगर सब जम्अ करता मैं तो बुत-ख़ाने हुए होते
न करता ज़ब्त अगर मैं गिर्या-ए-बे-इख़्तियारी कूँ
गुज़रता जिस तरफ़ ये पूर वीराने हुए होते
नज़र चश्म-ए-ख़रीदारी सीं करता दिलबर-ए-नादाँ
अगर क़तरे मिरे आँसू के दुरदाने हुए होते
मोहब्बत के नशे में ख़ास इंसाँ वास्ते वर्ना
फ़रिश्ते ये शराबें पी कि मस्ताने हुए होते
एवज़ अपने गरेबाँ के किसी की ज़ुल्फ़ हात आती
हमारे हात के पंजे मगर शाने हुए होते
तिरी शमशीर-ए-अबरू सीं हुए सन्मुख व इल्ला न
अजल की तेग़ सीं ज्यूँ आरा दंदाने हुए होते
मज़ा जो आशिक़ी में है सो माशूक़ी में हरगिज़ नीं
‘सिराज’ अब हो चुके अफ़सोस परवाने हुए होते
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सनम हज़ार हुआ तो वही सनम का सनम
कि अस्ल हस्ती-ए-नाबूद है अदम का अदम
इसी जहान में गोया मुझे बहिश्त मिली
अगर रखोगे मिरे पर यही करम का करम
अभी तो तुम ने किए थे हमारी जाँ-बख़्शी
फिर एक दम में वही नीमचा अलम का अलम
वो गुल-बदन का अजब है मिज़ाज-ए-रंगा-रंग
फ़जर कूँ लुत्फ़ तो फिर शाम कूँ सितम का सितम
न रख ‘सिराज’ किसी ख़ूब-रू सें चश्म-ए-वफ़ा
सनम हज़ार हुआ तो वही सनम का सनम
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फ़िदा कर जान अगर जानी यही है
अरे दिल वक़्त-ए-बे-जानी यही है
यही क़ब्र-ए-ज़ुलेख़ा सीं है आवाज़
अगर है यूसुफ़-ए-सानी यही है
नहीं बुझती है प्यास आँसू सीं लेकिन
करें क्या अब तो याँ पानी यही है
किसी आशिक़ के मरने का नहीं तरस
मगर याँ की मुसलमानी यही है
बिरह का जान कंदन है निपट सख़्त
शिताब आ मुश्किल आसानी यही है
पिरो तार-ए-पलक में दाना-ए-अश्क
कि तस्बीह-ए-सुलैमानी यही है
मुझे ज़ालिम ने गिर्यां देख बोला
कि इस आलम में तूफ़ानी यही है
ज़मीं पर यार का नक़्श-ए-कफ़-ए-पा
हमारा ख़त्त-ए-पेशानी यही है
वो ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन लगती नहीं हात
मुझे सारी परेशानी यही है
न फिरना जान देना उस गली में
दिल-ए-बे-जान की बानी यही है
किया रौशन चराग़-ए-दिल कूँ मेरे
‘सिराज’ अब फ़ज़्ल-ए-रहमानी यही है
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