खुसरो बाजी प्रेम की,
मैं खेलूं पी के संग।
जीत गई तो पी मेरे,
हारी तो पी के संग।।
खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार।
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।।
बल बल जाऊं मैं, तोरे रंग रेजवा;
अपनी सी रंग दीन्ही रे, मोसे नैना मिलाइके।
नदी किनारे मै खड़ी सो पानी झिलमिल होए।
पी गोरी मैं सांवरी , अब किस विध मिलना होय।।
अपनी छवि बनाई के मैं तो पी के पास गई।
जब छवि देखी पीहू की सो अपनी भूल गई।।
संतों की निंदा करे, रखे पर नारी से हेत।
वे नर ऐसे जा रोयेंगे, जैसे रणरेही का खेत।
आ साजन मोरे नयनन में, सो पलक ढांप तोहे दूं।
न मैं देखूं और न कोई, न तोहे देखन दूं।
रैन बिना जग दुखी और दुखी चंद्र बिन रैन।
तुम बिन साजन मैं दुखी और दुखी दरस बिन नैन।।
साजन ये मत जानियो तोहे बिछड़े मोहे को चैन।
दिया जलत है रात में और जिया जलत बिन रैन।।
खुसरो ऐसी पीत कर जैसे हिंदू जोय।
पूत पराए कारने जल जल कोयला होय।।