जो मुझ में तुझ में चला आ रहा है बरसों से
कहीं हयात इसी फ़ासले का नाम न हो
Charaag Shayari
चराग़ घर का हो महफ़िल का हो कि मंदिर का
हवा के पास कोई मस्लहत नहीं होती
rishta Shayari
ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं
तेरा होना भी नहीं और तिरा कहलाना भी
Har Sans
हर साँस किसी मरहम से कम ना थी
मैं जैसे कोई ज़ख़्म था भरता चला गया