Ghazal

आज़ाद भी नहीं थे तो पाबन्दियां न थीं

हम उस क़फ़स में थे कि जहां तीलियाँ न थीं

*क़फ़स=पिंजरा

नाख़ून से थे खोलने हर मोड़ पर हमें

वो  सारे क़ुफ़्ल जिनकी कहीं चाबियाँ न थीं

*क़ुफ़्ल=ताला

कमरा था और मैं था क़लम भी था मेज़ पर

इक फ़िक्र थी वरक़ था मगर उंगलियां न थीं

ईंधन भी ख़त्म हो गया,माचिस हुई तमाम

अल्लाह तेरा शुक्र अभी सर्दियां न थीं

कुछ साल पहले इतनी थीं आसाइशें कहाँ

कुछ साल पहले  आज सी बर्बादियाँ न थी

*आसाइशें=सुविधाएं

©फ़ानी जोधपुरी

غزل

آزاد بھی نہیں تھے تو پابندیاں نہ تھیں۔

ہم اس قفس میں تھے کہ جہاں تیلیاں نہ تھیں۔

ناخون سے تھے کھولنے ہر موڑ پہ ہمیں۔

وہ سارے قفل جن کی کہیں چابیاں نہ تھیں۔

کمرا تھا اور میں تھا قلم بھی تھا میز پہ۔

اک فکر تھی ورق تھا مگر انگلیاں نہ تھیں۔

ایندھن بھی ختم ہو گیا ماچس ہوئ تمام۔

اللہ تیرا شکر ابھی سردیاں نہ تھیں۔

کچھ سال پہلے اتنی تھیں آسائشیں کہاں۔

کچھ سال پہلے آج سی بربادیاں نہ تھیں۔

©جودھپوریفاؔنی

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shayri

आँखों का एहतराम तो उनकी नमी पे है

अब छोड़ दिया फैसला जो है तुमी पे है।

शराफत का आसमान बड़ी दूर तलक है

बादल मगर गुनाह का आना जमीं पे है।

मदमस्त जवानी है मगर याद रहे ये

दारोमदार मुल्क का सारा हमीं पे है।

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Hangama-e-gham se tang aa kar izhaar-e-masarrat

हंगामा-ए-ग़म से तंग आ कर इज़हार-ए-मसर्रत कर बैठे
मशहूर थी अपनी ज़िंदा-दिली दानिस्ता शरारत कर बैठे

कोशिश तो बहुत की हम ने मगर पाया न ग़म-ए-हस्ती से मफ़र
वीरानी-ए-दिल जब हद से बढ़ी घबरा के मोहब्बत कर बैठे

हस्ती के तलातुम में पिन्हाँ थे ऐश ओ तरब के धारे भी
अफ़्सोस हमी से भूल हुई अश्कों पे क़नाअत कर बैठे

ज़िंदान-ए-जहाँ से ये नफ़रत ऐ हज़रत-ए-वाइज़ क्या कहना
अल्लाह के आगे बस न चला बंदों से बग़ावत कर बैठे

गुलचीं ने तो कोशिश कर डाली सूनी हो चमन की हर डाली
काँटों ने मुबारक काम किया फूलों की हिफ़ाज़त कर बैठे

हर चीज़ नहीं है मरकज़ पर इक ज़र्रा इधर इक ज़र्रा उधर
नफ़रत से न देखो दुश्मन को शायद वो मोहब्बत कर बैठे

अल्लाह तो सब की सुनता है जुरअत है ‘शकील’ अपनी अपनी
‘हाली’ ने ज़बाँ से उफ़ भी न की ‘इक़बाल’ शिकायत कर बैठे

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Nigah-e-naz ka ek war kar ke

निगाह-ए-नाज़ का इक वार कर के छोड़ दिया
दिल-ए-हरीफ़ को बेदार कर के छोड़ दिया

हुई तो है यूँही तरदीद-ए-अहद-ए-लुत्फ़-ओ-करम
दबी ज़बान से इक़रार कर के छोड़ दिया

छुपे कुछ ऐसे कि ता-ज़ीस्त फिर न आए नज़र
रहीन-ए-हसरत-ए-दीदार कर के छोड़ दिया

मुझे तो क़ैद-ए-मोहब्बत अज़ीज़ थी लेकिन
किसी ने मुझ को गिरफ़्तार कर के छोड़ दिया

नज़र को जुरअत-ए-तकमील-ए-बंदगी न हुई
तवाफ़-ए-कूच-ए-दिल-दार कर के छोड़ दिया

ख़ुशा वो कशमकश-ए-रब्त-ए-बाहमी जिस ने
दिल ओ दिमाग़ को बे-कार कर के छोड़ दिया

ज़हे-नसीब कि दुनिया ने तेरे ग़म ने मुझे
मसर्रतों का तलबगार कर के छोड़ दिया

करम की आस में अब किस के दर पे जाए ‘शकील’
जब आप ही ने गुनहगार कर के छोड़ दिया

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kisi ko jab nigahon ke muqabil

किसी को जब निगाहों के मुक़ाबिल देख लेता हूँ
तो पहले सर झुका के हालत-ए-दिल देख लेता हूँ

मआल-ए-जुस्तुजू-ए-शौक़-ए-कामिल देख लेता हूँ
उठाते ही क़दम आसार-ए-मंज़िल देख लेता हूँ

मैं तुझ से और लुत्फ़-ए-ख़ास का तालिब मआ’ज़-अल्लाह
सितम-गर इस बहाने से तिरा दिल देख लेता हूँ

जो मौजें ख़ास कर चश्म-ओ-चराग़-ए-दाम-ए-तूफ़ाँ हैं
मैं उन मौजों को हम-आग़ोश-ए-साहिल देख लेता हूँ

‘शकील’ एहसास है मुझ को हर इक मौज़ूँ तबीअ’त का
ग़ज़ल पढ़ने से पहले रंग-ए-महफ़िल देख लेता हूँ

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Khatune Jina Markaze Iman Fathima

Khatune Jina Markaze Iman Fathima
Aosaf-e- Hameeda o Mumtaz Fathima

Sarta-Ba Kadam Tu Hai Noore Mohammadi
Chadar Hai Teri Chadare Tatheer Fathima

Thokde Jo Bahatar (72) Tere Islam Per Nisar
Bholega Na Islam A Ahsan Fathima

Hai Sabse Juda Kumba Tera Kumbaye Rasool
Bete Tere Hai Din Ke Sultan Fathima

Khawja-Qutub Hai Koi
Ghouso-Nizam Hai
Bete Tere Hai Sabse Juda Ekta Fathima

Hai Hadde Fazail Ke Tu Malika A Jina Hai
Sarkare Do Jahan Ki Tu Jaan Fathima

“Syed” Pe Tere Kitne Fazlo-Karam Huwe
Mangta Huwa Beta Huwa Tera A Fathima

Written By :
Aale-Rasool Sehzadaye Sarkare Ghouse Azam “Syed Mohsin Qadri ” , Davanagere. Karnataka . India

Instagram Page : @faizane_muhiyuddin_

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Bas Itni Si Inaayat

Bas Itni Si Inaayat Mujh Pe Aik Baar Kijiye
Kabhi Aa Ke Mere Zakhmon Ka Dedaar Kijiye

Ho Jaaiye Begaane Aap Shauq Se Sanam
Aapka Hoon Aapka Rahunga Aitbaar Kijiye

Parhne Waale Hi Darr Jaayen Dekh Kar Isey
Kitaab-E-Dil Ko Itna Naa Daaghdar Kijiye

Naa Majboor Kijiye, Ke Main Unko Bhool Jaaon
Mujhe Meri Wafaaon Ka Na Gunehgar Kijiye

In Jalte Diyon Ko Dekh Kar Naa Muskuraiye
Zara Hawaaon Ke Chalne Ka Intezaar Kijiye

Karna Hai Ishq Aapse Karte Rahenge Hum
Jo Bhi Karna Hai Aapko Mere Sarkaar , Kijiye

Phir Sapnon Ka Ashiyan Bana Liya Hai Maine
Phir Aandhiyon Ko Aap khabardar Kijiye

Hamen Naa Dikhaiye Ye Daulat Yeh Shohrat
Hum Pyaar Ke Bhokhe Hain Hamen Pyaar Kijiye

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Allah ka inaam hai ramzan ishq hai

Rab se lagi ho loh to fir aasan ishq hai
sajde main sar katane ka arman ishq hai
Insan ke uruj ka mizan ishq hai
Allah ka inaam hai ramzan ishq hai
Allah ka inaam hai ramzan ishq hai

Pahele kadam pe ashra-e-rehmat ki barishein
Aur dusre kadam pe hai aelane magfirat
Akhir ke das dinon mein mile aag se nijat

Hain aashikon pe rabb ki musalsal nwazishein
aur dab dabai aankhon mein jannat ki khwahishein

Uski madad se kis kadar aasan ishq hai
Roze ajal bandha tha jo payman ishq hai
Allah ka imaamn hai ramzan ishq hai

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iman ki lagzish ka inkaam

ईमान की लग़्ज़िश का इम्कान अरे तौबा
बद-चलनी में ज़ाहिद का चालान अरे तौबा

उठ कर तिरी चौखट से हम और चले जाएँ
इंग्लैण्ड अरे तौबा जापान अरे तौबा

है गोद के पालों से अब ख़ौफ़-ए-दग़ा-बाज़ी
ये अपने ही भांजों पर बोहतान अरे तौबा

इंसानों को दिन दिन भर अब खाना नहीं मिलता
मुद्दत से फ़रोकश हैं रमज़ान अरे तौबा

लिल्लाह ख़बर लीजे अब क़ल्ब-ए-शिकस्ता की
गिरता है मोहब्बत का दालान अरे तौबा

दामान-ए-तक़द्दुस पर दाग़ों की फ़रावानी
इक मौलवी के घर में शैतान अरे तौबा

अब ख़ैरियतें सर करी मालूम नहीं होतीं
गंजों को है नाख़ुन का अरमान अरे तौबा

मशरिक़ पे भी नज़रें हैं मग़रिब पे भी नज़रें हैं
ज़ालिम के तख़य्युल की लम्बान अरे तौबा

ऐ ‘शौक़’ न कुछ कहिए हालत दिल-ए-मुज़्तर की
होता है मसीहा को ख़फ़्क़ान अरे तौबा

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toor wale teri tanveer liye baithe hain

तूर वाले तिरी तनवीर लिए बैठे हैं
हम तुझी को बुत-ए-बे-पीर लिए बैठे हैं

जिगर ओ दिल की न पूछो जिगर ओ दिल मेरे
निगह-ए-नाज़ के दो तीर लिए बैठे हैं

इन के गेसू दिल-ए-उश्शाक़ फँसाने के लिए
जा-ब-जा हल्क़ा-ए-ज़ंजीर लिए बैठे हैं

ऐ तिरी शान कि क़तरों में है दरिया जारी
ज़र्रे ख़ुर्शीद की तनवीर लिए बैठे हैं

फिर वो क्या चीज़ है जो दिल में उतर जाती है
तेग़ पास उन के न वो तीर लिए बैठे हैं

मय-ए-इशरत से भरे जाते हैं अग़्यार के जाम
हम तही कासा-ए-तक़दीर लिए बैठे हैं

किश्वर ओ इश्क़ में मुहताज कहाँ हैं ‘बेदम’
क़ैस ओ फ़रहाद की जागीर लिए बैठे हैं

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