Sine me dil hain dil me dagh

सीने में दिल है दिल में दाग़ दाग़ में सोज़-ओ-साज़-ए-इश्क़
पर्दा-ब-पर्दा है निहाँ पर्दा-नशीं का राज़-ए-इश्क़

नाज़ कभी नियाज़ है और नियाज़ नाज़-ए-इश्क़
ख़त्म हुआ न हो कभी सिलसिला-ए-दराज़-ए-इश्क़

इश्क़ अदा-नवाज़-ए-हुस्न हुस्न करिश्मा-साज़-ए-इश्क़
आज से क्या अज़ल से है हुस्न से साज़-बाज़-ए-इश्क़

अपनी ख़बर कहाँ उन्हें जिन पे खुला है राज़-ए-इश्क़
सारे शुऊर मिट गए जब हुआ इम्तियाज़-ए-इश्क़

होश-ओ-ख़िरद भी अल-फ़िराक़ ”बैनी-व-बैनका” कहें
हज़रत-ए-दिल का ख़ैर से है सफ़र-ए-हिजाज़-ए-इश्क़

पीर-ए-मुग़ाँ के पा-ए-नाज़ और मिरा सर-ए-नियाज़
होती है मय-कदे में रोज़ अपनी यूँही नमाज़-ए-इश्क़

हसरत-ओ-यास-ओ-आरज़ू शौक़ का इक़्तिदा करें
कुश्ता-ए-ग़म की लाश पर धूम से हो नमाज़-ए-इश्क़

इश्क़ की ज़ात ही से है ख़ूबी-ए-हुस्न-ओ-शान-ए-हुस्न
हुस्न के दम-क़दम से है सारा ये सोज़-ओ-साज़-ए-इश्क़

ऐ दिल-ए-दर्दमंद फिर नाला हो कोई दिल-गुदाज़
सूनी पड़ी है बज़्म-ए-शौक़ छेड़ दे अपना साज़-ए-इश्क़

होश-ओ-ख़िरद अदू-ए-इश्क़ इश्क़ है दुश्मन-ए-ख़िरद
है न हुआ न हो कभी अक़्ल से साज़-बाज़-ए-इश्क़

‘बेदम’-ए-ख़स्ता है कहाँ अस्ल में कोई और है
ज़मज़मा-संज बे-ख़ुदी नग़्मा-तराज़ साज़-ए-इश्क़

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Tareef us khuda ki jinse jaha banaya

तारीफ़ उस ख़ुदा की जिस ने जहाँ बनाया
कैसी ज़मीं बनाई क्या आसमाँ बनाया

पाँव तले बिछाया क्या ख़ूब फ़र्श-ए-ख़ाकी
और सर पे लाजवर्दी इक साएबाँ बनाया

मिट्टी से बेल-बूटे क्या ख़ुशनुमा उगाए
पहना के सब्ज़ ख़िलअत उन को जवाँ बनाया

ख़ुश-रंग और ख़ुशबू गुल फूल हैं खिलाए
इस ख़ाक के खंडर को क्या गुलिस्ताँ बनाया

मेवे लगाए क्या क्या ख़ुश-ज़ाएक़ा रसीले
चखने से जिन के मुझ को शीरीं-दहाँ बनाया

सूरज बना के तू ने रौनक़ जहाँ को बख़्शी
रहने को ये हमारे अच्छा मकाँ बनाया

प्यासी ज़मीं के मुँह में मेंह का चुवाया पानी
और बादलों को तू ने मेंह का निशाँ बनाया

ये प्यारी प्यारी चिड़ियाँ फिरती हैं जो चहकती
क़ुदरत ने तेरी उन को तस्बीह-ख़्वाँ बनाया

तिनके उठा उठा कर लाईं कहाँ कहाँ से
किस ख़ूब-सूरती से फिर आशियाँ बनाया

ऊँची उड़ें हवा में बच्चों को पर न भूलें
इन बे-परों का उन को रोज़ी-रसाँ बनाया

क्या दूध देने वाली गाएँ बनाईं तू ने
चढ़ने को मेरे घोड़ा क्या ख़ुश-इनाँ बनाया

रहमत से तेरी क्या क्या हैं नेमतें मयस्सर
इन नेमतों का मुझ को है क़द्र-दाँ बनाया

आब-ए-रवाँ के अंदर मछली बनाई तू ने
मछली के तैरने को आब-ए-रवाँ बनाया

हर चीज़ से है तेरी कारीगरी टपकती
ये कारख़ाना तू ने कब राएगाँ बनाया

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Bazm-e-izad me beparda

बज़्म-ए-ईजाद में बे-पर्दा कोई साज़ नहीं
है ये तेरी ही सदा ग़ैर की आवाज़ नहीं

कह सके कौन वो क्या है मगर अज़-रू-ए-यक़ीं
गुल नहीं शम्अ’ नहीं सर्व-ए-सर-अफ़राज़ नहीं

दिल हो बे-लौस तो क्या वजह-ए-तसल्ली हो दरोग़
ताइर-ए-मुर्दा मगर तोमा-ए-शहबाज़ नहीं

बुलबुलों का था जहाँ सेहन-ए-चमन में अम्बोह
आज चिड़िया भी वहाँ ज़मज़मा-पर्दाज़ नहीं

भाग वीराना-ए-दुनिया से कि इस मंज़िल में
नुज़्ल-ए-मेहमान ब-जुज़ माइदा-ए-आज़ नहीं

दिलबरी जज़्ब-ए-मोहब्बत का करिश्मा है फ़क़त
कुछ करामत नहीं जादू नहीं एजाज़ नहीं

दिल की तस्ख़ीर है शीरीं-सुख़नी पर मौक़ूफ़
कुछ करामत नहीं जादू नहीं एजाज़ नहीं

दस्त-ए-क़ुदरत ने मुझे आप बनाया है तो फिर
कौन सा काम है मेरा कि ख़ुदा-साज़ नहीं

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Didar me ek tarfa didar nazar aaya

दीदार में इक तुर्फ़ा दीदार नज़र आया
हर बार छुपा कोई हर बार नज़र आया

छालों को बयाबाँ भी गुलज़ार नज़र आया
जब छेड़ पर आमादा हर ख़ार नज़र आया

सुब्ह-ए-शब-ए-हिज्राँ की वो चाक-गरेबानी
इक आलम-ए-नैरंगी हर तार नज़र आया

हो सब्र कि बेताबी उम्मीद कि मायूसी
नैरंग-ए-मोहब्बत भी बे-कार नज़र आया

जब चश्म-ए-सियह तेरी थी छाई हुई दिल पर
इस मुल्क का हर ख़ित्ता तातार नज़र आया

तू ने भी तो देखी थी वो जाती हुई दुनिया
क्या आख़री लम्हों में बीमार नज़र आया

ग़श खा के गिरे मूसा अल्लाह-री मायूसी
हल्का सा वो पर्दा भी दीवार नज़र आया

ज़र्रा हो कि क़तरा हो ख़ुम-ख़ाना-ए-हस्ती में
मख़मूर नज़र आया सरशार नज़र आया

क्या कुछ न हुआ ग़म से क्या कुछ न किया ग़म ने
और यूँ तो हुआ जो कुछ बे-कार नज़र आया

ऐ इश्क़ क़सम तुझ को मा’मूरा-ए-आलम की
कोई ग़म-ए-फ़ुर्क़त में ग़म-ख़्वार नज़र आया

शब कट गई फ़ुर्क़त की देखा न ‘फ़िराक़’ आख़िर
तूल-ए-ग़म-ए-हिज्राँ भी बे-कार नज़र आया

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Koi Paiganm-e-Mohabbat

कोई पैग़ाम-ए-मोहब्बत लब-ए-एजाज़ तो दे
मौत की आँख भी खुल जाएगी आवाज़ तो दे

मक़्सद-ए-इश्क़ हम-आहंगी-ए-जुज़्व-ओ-कुल है
दर्द ही दर्द सही दिल बू-ए-दम-साज़ तो दे

चश्म-ए-मख़मूर के उनवान-ए-नज़र कुछ तो खुलें
दिल-ए-रंजूर धड़कने का कुछ अंदाज़ तो दे

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Dil mera jis se bahalta koi aisa na mila

दिल मिरा जिस से बहलता कोई ऐसा न मिला
बुत के बंदे मिले अल्लाह का बंदा न मिला

बज़्म-ए-याराँ से फिरी बाद-ए-बहारी मायूस
एक सर भी उसे आमादा-ए-सौदा न मिला

गुल के ख़्वाहाँ तो नज़र आए बहुत इत्र-फ़रोश
तालिब-ए-ज़मज़मा-ए-बुलबुल-ए-शैदा न मिला

वाह क्या राह दिखाई है हमें मुर्शिद ने
कर दिया काबे को गुम और कलीसा न मिला

रंग चेहरे का तो कॉलेज ने भी रक्खा क़ाइम
रंग-ए-बातिन में मगर बाप से बेटा न मिला

सय्यद उट्ठे जो गज़ट ले के तो लाखों लाए
शैख़ क़ुरआन दिखाते फिरे पैसा न मिला

होशयारों में तो इक इक से सिवा हैं ‘अकबर’
मुझ को दीवानों में लेकिन कोई तुझ सा न मिला

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Hangama hai kyun barpa thodi si jo pi li hai

हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं मारा चोरी तो नहीं की है

ना-तजरबा-कारी से वाइ’ज़ की ये हैं बातें
इस रंग को क्या जाने पूछो तो कभी पी है

उस मय से नहीं मतलब दिल जिस से है बेगाना
मक़्सूद है उस मय से दिल ही में जो खिंचती है

ऐ शौक़ वही मय पी ऐ होश ज़रा सो जा
मेहमान-ए-नज़र इस दम एक बर्क़-ए-तजल्ली है

वाँ दिल में कि सदमे दो याँ जी में कि सब सह लो
उन का भी अजब दिल है मेरा भी अजब जी है

हर ज़र्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही से
हर साँस ये कहती है हम हैं तो ख़ुदा भी है

सूरज में लगे धब्बा फ़ितरत के करिश्मे हैं
बुत हम को कहें काफ़िर अल्लाह की मर्ज़ी है

तालीम का शोर ऐसा तहज़ीब का ग़ुल इतना
बरकत जो नहीं होती निय्यत की ख़राबी है

सच कहते हैं शैख़ ‘अकबर’ है ताअत-ए-हक़ लाज़िम
हाँ तर्क-ए-मय-ओ-शाहिद ये उन की बुज़ुर्गी है

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majnun ne shahar chhoda

मजनूँ ने शहर छोड़ा तो सहरा भी छोड़ दे
नज़्ज़ारे की हवस हो तो लैला भी छोड़ दे

वाइ’ज़ कमाल-ए-तर्क से मिलती है याँ मुराद
दुनिया जो छोड़ दी है तो उक़्बा भी छोड़ दे

तक़लीद की रविश से तो बेहतर है ख़ुद-कुशी
रस्ता भी ढूँड ख़िज़्र का सौदा भी छोड़ दे

मानिंद-ए-ख़ामा तेरी ज़बाँ पर है हर्फ़-ए-ग़ैर
बेगाना शय पे नाज़िश-ए-बेजा भी छोड़ दे

लुत्फ़-ए-कलाम क्या जो न हो दिल में दर्द-ए-इश्क़
बिस्मिल नहीं है तू तो तड़पना भी छोड़ दे

शबनम की तरह फूलों पे रो और चमन से चल
इस बाग़ में क़याम का सौदा भी छोड़ दे

है आशिक़ी में रस्म अलग सब से बैठना
बुत-ख़ाना भी हरम भी कलीसा भी छोड़ दे

सौदा-गरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है
ऐ बे-ख़बर जज़ा की तमन्ना भी छोड़ दे

अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल
लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे

जीना वो क्या जो हो नफ़स-ए-ग़ैर पर मदार
शोहरत की ज़िंदगी का भरोसा भी छोड़ दे

शोख़ी सी है सवाल-ए-मुकर्रर में ऐ कलीम
शर्त-ए-रज़ा ये है कि तक़ाज़ा भी छोड़ दे

वाइ’ज़ सुबूत लाए जो मय के जवाज़ में
‘इक़बाल’ को ये ज़िद है कि पीना भी छोड़ दे

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Mera ji hain jab tak teri zustazu hain

मिरा जी है जब तक तिरी जुस्तुजू है
ज़बाँ जब तलक है यही गुफ़्तुगू है

ख़ुदा जाने क्या होगा अंजाम इस का
मैं बे-सब्र इतना हूँ वो तुंद-ख़ू है

तमन्ना तिरी है अगर है तमन्ना
तिरी आरज़ू है अगर आरज़ू है

किया सैर सब हम ने गुलज़ार-ए-दुनिया
गुल-ए-दोस्ती में अजब रंग-ओ-बू है

ग़नीमत है ये दीद व दीद-ए-याराँ
जहाँ आँख मुँद गई न मैं हूँ न तू है

नज़र मेरे दिल की पड़ी ‘दर्द’ किस पर
जिधर देखता हूँ वही रू-ब-रू है

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