इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो हो
ऐश-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो
अक़्ल के मदरसे से हो इश्क़ के मय-कदा में आ
जाम-ए-फ़ना व बे-ख़ुदी अब तो पिया जो हो सो हो
लाग की आग लग उठी पम्बा तरह सा जल गया
रख़्त-ओ-जूद जान-आे-तन कुछ न बचा जो हो सो हो
हिज्र की सब मुसीबतें अर्ज़ कीं उस के रू-ब-रू
नाज़-ओ-अदा से मुस्कुरा कहने लगा जो हो सो हो
दुनिया के नेक-ओ-बद से काम हम को ‘नियाज़’ कुछ नहीं
आप से जो गुज़र गया फिर उसे क्या जो हो सो हो