जुल्फे सरकार से जब चेहरा निकलता होगा
फिर भला कैसे कोई चाँद को तकता होगा
ऐ हलीमा ये बता तू ने तो देखा होगा
कैसे तुझ से मेरा महबूब लिपटा होगा
क़ाबिले रश्क है सिद्दीक़ तेरा आसु
गार में आप के रुख पर जो टपका होगा
कितनी खुश बख्त है वो गलिया यारो
जिन में बन थान के मेरा महबूब निकलता होगा
जब कभी आप अंधेरे में निकलते होंगे
शबे तारिख में खुर्शीद भी चमकता होगा
मुझे को मालूम है तैबा से जुदाई का असर
की शाम शम्स भी रोते हुए ढलता होगा ।