मोहे अपने ही रंग में रंग दे रंगीले
तो तू साहेब मेरा महबूब-ए-इलाही
हमरी चदरिया पिया की पगरिया दोनों बसंती रंग दे
तो तू साहेब मेरा महबूब-ए-इलाही
जो तू माँगे रंग की रंगाई मेरा जोबन गिरवी रख ले
तो तू साहेब मेरा महबूब-ए-इलाही
आन परी तोरे दरवाजे पर मिरी लाज-शरम सब रख ले
तो तू साहेब मेरा महबूब-ए-इलाही
‘निजामुद्दीन-औलिया’ हैं पीर मेरो प्रेम पीत का संग दे
तो तू साहेब मेरा महबूब-ए-इलाही