मुझे शिकवा नहीं बर्बाद रख बर्बाद रहने दे
मगर अल्लाह मेरे दिल में अपनी याद रहने दे
क़फ़स में क़ैद रख या क़ैद से आज़ाद रहने दे
बहर-सूरत चमन ही में मुझे सय्याद रहने दे
मिरे नाशाद रहने से अगर तुझ को मसर्रत है
तो मैं नाशाद ही अच्छा मुझे नाशाद रहने दे
तिरी शान-ए-तग़ाफ़ुल पर मिरी बर्बादियाँ सदक़े
जो बर्बाद-ए-तमन्ना हो उसे बर्बाद रहने दे
तुझे जितने सितम आते हैं मुझ पर ख़त्म कर देना
न कोई ज़ुल्म रह जाए न अब बे-दाद रहने दे
न सहरा में बहलता है न कू-ए-यार में ठहरे
कहीं तो चैन से मुझ को दिल-ए-नाशाद रहने दे
कुछ अपनी गुज़री ही ‘बेदम’ भली मालूम होती है
मिरी बीती सुना दे क़िस्सा-ए-फ़रहाद रहने दे