न मैं समझा न आप आए कहीं से
पसीना पोछिए अपनी जबीं से
चली आती है होंटों पर शिकायत
नदामत टपकी पड़ती है जबीं से
अगर सच है हसीनों में तलव्वुन
तो है उम्मीद-ए-वस्ल उन की नहीं से
कहाँ की दिल-लगी कैसी मोहब्बत
मुझे इक लाग है जान-ए-हज़ीं से
इधर लाओ ज़रा दस्त-ए-हिनाई
पकड़ दें चोर दिल का हम यहीं से
जुनूँ में इस ग़ज़ब की ख़ाक उड़ाई
बनाया आसमाँ हम ने ज़मीं से
वहाँ आशिक़-कुशी है ऐन-ईमाँ
उन्हें क्या बहस ‘अनवर’ कुफ़्र-ओ-दीं से