नात : (अरबी – نعت) उर्दू और फ़ारसी इस्लामी पद्य साहित्य में एक पद्य रूप है, Naat जिस में पैगंबर हज़रत मुहम्मद साहब की तारीफ़ करते लिखी जाती है। यह नात ख्वानी का रिवाज भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश में आम है। भाशा अनुसार देखें तो, पश्तो, बंगाली, उर्दू और पंजाबी में नात ख्वानी आम है। नात ख्वां तुर्की, फ़ारसी, अरबी, उर्दू, बंगाली, पंजाबी, अंग्रेज़ी, कश्मीरी और सिंधी भाशाओं में आम है।
Natiya kalam on Silver Hints, famous Shayar
हमीं से अपनी नवा हम-कलाम होती रही
ये तेग़ अपने लहू में नियाम होती रही
मुक़ाबिल-ए-सफ़-ए-आदा जिसे किया आग़ाज़
वो जंग अपने ही दिल में तमाम होती रही
कोई मसीहा न ईफ़ा-ए-अहद को पहुँचा
बहुत तलाश पस-ए-क़त्ल-ए-आम होती रही
ये बरहमन का करम वो अता-ए-शैख़-ए-हरम
कभी हयात कभी मय हराम होती रही
जो कुछ भी बन न पड़ा ‘फ़ैज़‘ लुट के यारों से
तो रहज़नों से दुआ-ओ-सलाम होती रही
Naat Ahmad Raza Ke Hawale
अहमद रजा खान (अरबी : أحمد رضا خان, फारसी : احمد رضا خان, उर्दू : احمد رضا خان, हिंदी : अहमद रजा खान), जिसे आमतौर पर अहमद रजा खान बरेलवी, अरबी में इमाम अहमद रज़ा खान, या “आला हज़रत” के नाम से जाना जाता है -हज़रत “(14 जून 1856 सीई या 10 शावाल 1272 एएच – 28 अक्टूबर 1921 सीई या 25 सफार 1340 एएच ), एक इस्लामी विद्वान, न्यायवादी, धर्मविज्ञानी, तपस्वी, सूफी और ब्रिटिश भारत में सुधारक थे
इमाम अहमद रज़ा खान फाज़िले बरेलवी के मानने वाले उन्हें आला हजरत के नाम से याद करते हैं। आला हज़रत बहुत बड़े मुफ्ती, आलिम, हाफिज़, लेखक, शायर, धर्मगुरु, भाषाविद, युगपरिवर्तक, तथा समाज सुधारक थे। जिन्हें उस समय के प्रसिद्ध अरब विद्वानों ने यह उपाधि दी।उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों के दिलों में अल्लाह तआला व मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वसल्लम के प्रति प्रेम भर कर हज़रत मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तआला की सुन्नतों को जीवित कर के इस्लाम की सही रूह को पेश किया