Nazer e Tagaful e yaar ka gilaa by: Qadri mohd. Ubair In Shayari नज़र-ए-तग़ाफ़ुल-ए-यार का गिला किस ज़बाँ सीं बयाँ करूँ कि शराब-ए-सद-क़दह आरज़ू ख़ुम-ए-दिल में थी सो भरी रही