सनम हज़ार हुआ तो वही सनम का सनम
कि अस्ल हस्ती-ए-नाबूद है अदम का अदम
इसी जहान में गोया मुझे बहिश्त मिली
अगर रखोगे मिरे पर यही करम का करम
अभी तो तुम ने किए थे हमारी जाँ-बख़्शी
फिर एक दम में वही नीमचा अलम का अलम
वो गुल-बदन का अजब है मिज़ाज-ए-रंगा-रंग
फ़जर कूँ लुत्फ़ तो फिर शाम कूँ सितम का सितम
न रख ‘सिराज’ किसी ख़ूब-रू सें चश्म-ए-वफ़ा
सनम हज़ार हुआ तो वही सनम का सनम