Mir Taqi Mir
Born | February 1723 Agra, Mughal India |
---|---|
Died | 21 September 1810 (aged 87) Lucknow, Oudh State, Mughal India |
Pen name | Mir |
Occupation | Urdu poet |
Period | Mughal India |
Genre | Ghazal, Mathnavi, Persian Poetry |
Subject | Love, philosophy |
Notable works | Faiz-e-Mir Zikr-e-Mir Nukat-us-Shura Kulliyat-e-Farsi Kulliyat-e-Mir |
E-Book
Kulliyat-e-Meer
Diwan-e-Meer
Nikaatul-Shora-Mir
Masnavi-Gul-Mir
Intikhab-e-Kalam-e-Mir
Farhang-e-Kalam-e-Mir
ख़ुदा-ए-सुखन मोहम्मद तकी उर्फ मीर तकी “मीर” (1723 – 20 सितम्बर 1810) उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे। मीर को उर्दू के उस प्रचलन के लिए याद किया जाता है जिसमें फ़ारसी और हिन्दुस्तानी के शब्दों का अच्छा मिश्रण और सामंजस्य हो। अहमद शाह अब्दाली और नादिरशाह के हमलों से कटी-फटी दिल्ली को मीर तक़ी मीर ने अपनी आँखों से देखा था। इस त्रासदी की व्यथा उनकी रचनाओं मे दिखती है। अपनी ग़ज़लों के बारे में एक जगह उन्होने कहा था-
हमको शायर न कहो मीर कि साहिब हमने
दर्दो ग़म कितने किए जमा तो दीवान किया
उर्दू शायर मीर तक़ी मीर की जीवनी और संघर्ष
इनका जन्म आगरा (अकबरपुर) मे हुआ था। उनका बचपन अपने पिता की देखरेख मे बीता। उनके प्यार और करुणा के जीवन में महत्त्व के प्रति नजरिये का मीर के जीवन पे गहरा प्रभाव पड़ा जिसकी झलक उनके शेरो मे भी देखने को मिलती है | पिता के मरणोपरांत, ११ की वय मे, इनके उपर ३०० रुपयों का कर्ज था और पैतृक सम्पत्ति के नाम पर कुछ किताबें। १७ साल की उम्र में वे दिल्ली आ गए। बादशाह के दरबार में १ रुपया वजीफ़ा मुकर्रर हुआ। इसको लेने के बाद वे वापस आगरा आ गए।
शाही खिताब:
‘मीर’ साहब के अपने कहे के अनुसार उनके बारे में राय कैसे बनायी जा सकती हैं? तटस्थ रुप से देखने पर दिखाई देता है कि मीर पर बचपन और जवानी के दिनों में ज़रुर मुसीबतें पड़ी, लेकिन प्रौढ़ावस्था और बुढ़ापे में उन्हें बहुत सुख और सम्मान मिला। जिन लोगों के साथ ऐसा होता है, वे साधारण दूसरों के प्रति और अधिक सहानुभूति रखने वाले मृदु-भाषी और गंभीर हो जाते हैं। ‘मीर’ की कटुता उनके अंत समय तक न गई। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इसका एक ही कारण हो सकता है। वह यह कि ‘मीर’ प्रेम के मामले में हमेशा असफल रहे और जीवन के इस बड़े भारी प्रभाव ने उनके अवचेतन मस्तिष्क में घर करके उनमें असाधारण और कटुता भर दी।