Mirza Ghalib
उपनाम: | असद, ग़ालिब |
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जन्म: | 27 दिसंबर, 1796 आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत |
मृत्यु: | 15 फरवरी, 1869 |
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मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां उर्फ “ग़ालिब” उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे। इनको उर्दू भाषा का सर्वकालिक महान शायर माना जाता है और फ़ारसी कविता के प्रवाह को हिन्दुस्तानी जबान में लोकप्रिय करवाने का श्रेय भी इनको दिया जाता है। ग़ालिब के लिखे पत्र, जो उस समय प्रकाशित नहीं हुए थे, को भी उर्दू लेखन का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है। ग़ालिब को भारत और पाकिस्तान में एक महत्वपूर्ण कवि के रूप में जाना जाता है। उन्हे दबीर-उल-मुल्क और नज़्म-उद-दौला का खिताब मिला। ग़ालिब नाम से लिखने वाले मिर्ज़ा मुग़ल काल के आख़िरी शासक बहादुर शाह ज़फ़र के दरबारी कवि भी रहे थे। आगरा, दिल्ली और कलकत्ता में अपनी ज़िन्दगी गुजारने वाले ग़ालिब को मुख्यतः उनकी उर्दू ग़ज़लों को लिए याद किया जाता है।
उर्दू शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की जीवनी और संघर्ष
उर्दू शायरी में किसी शख्स का नाम सबसे ज्यादा लिया जाता हैं तो वह हैं मिर्ज़ा ग़ालिब. मिर्ज़ा ग़ालिब मुग़ल शासन के दौरान ग़ज़ल गायक, कवि और शायर हुआ करते थे. उर्दू भाषा के फनकार और शायर मिर्ज़ा ग़ालिब का नाम आज भी काफी अदब से लिया जाता हैं. उनके दवारा लिखी गई गज़लें और शायरियाँ आज भी युवाओं और प्रेमी जोड़ों को अपनी और आकर्षित करती हैं. मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरियाँ बेहद ही आसान और कुछ पंक्तियों में हुआ करती थी. जिसके कारण यह जन-मन में पहुँच गयी. आज हम आपको मिर्ज़ा ग़ालिब के जीवन से जुडी जानकारी और अनछुये पहलू बताएँगे.
शाही खिताब:
१८५० मे शहंशाह बहादुर शाह ज़फ़र २ ने मिर्ज़ा गालिब को “दबीर-उल-मुल्क” और “नज़्म-उद-दौला” के खिताब से नवाज़ा। बाद मे उन्हे “मिर्ज़ा नोशा” क खिताब भी मिला। वे शहंशाह के दरबार मे एक महत्वपुर्ण दरबारी थे। उन्हे बहादुर शाह ज़फर २ के ज्येष्ठ पुत्र राजकुमार फ़क्र-उद-दिन मिर्ज़ा का शिक्षक भी नियुक्त किया गया। वे एक समय मे मुगल दरबार के शाही इतिहासविद भी थे।