इंसान मुस्तक़बिल को सोच के अपना हाल ज़ाया करता है,
फिर मुस्तक़बिल मैं अपना माज़ी याद कर के रोता है।
मुस्तकबिल = भविष्य, माज़ी = भूतकाल, हाल = वर्तमान
Sheikh Saadi
इंसान दौलत कमाने के लिए अपनी सेहत खो देता है
और फिर सेहत को वापिस पाने के लिए अपनी दौलत खो देता है।
जीता ऐसे है जैसे कभी मरना ही नहीं है,
और मर जाता ऐसे है जैसे कभी जिया ही नहीं।
ताज्जुब की बात है अल्लाह अपनी इतनी सारी मख्लूक़ में से मुझे नहीं भूलता
और मेरा तो एक ही अल्लाह है में उसे भूल जाता हूँ।