Maulana Rumi
उपाधि | मेवलावी, मौलवी |
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पैदाइश | 30 सितम्बर 1207 बल्ख,या वख्श, |
वफ़ात | 17 दिसम्बर 1273 (आयु 66) कोन्या, रूमी सल्तनत |
कब्र स्थल | मौलाना रूमी का मक़बरा, मौलाना म्यूजियम, कोन्या, तुर्की |
जातीयता | पर्शियन |
युग | इस्लामी स्वर्ण युग |
मुरीद | शम्स तबरेज़ी |
धर्म | इस्लाम |
सम्प्रदाय | सुन्नी |
न्यायशास्र | हनफ़ी |
मुख्य रूचि | सूफ़ी कविता, हनफ़ी न्यायशास्त्र |
उल्लेखनीय कार्य | सूफ़ी नृत्य, मराक़बा |
उल्लेखनीय कार्य | मसनवी-ए मनावी, दीवान-ए शम्स-ए तबरीज़ी |
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मौलाना मुहम्मद जलालुद्दीन रूमी का जन्म फारस देश के प्रसिद्ध नगर बल्ख़ में सन् 604 हिजरी में हुआ था। इनकी मसनवी को क़ुरआनी पहलवी भी कहते हैं. इसमें 26600 दो-पदी छंद हैं , कहा जाता है कि निशापुर में इनकी भेंट प्रसिद्ध सूफ़ी संत शेख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार से भी हुई थी. फ़रीदुद्दीन अत्तार ने इन्हें अपनी इलाहीनामा की एक प्रति भेंट भी की थी. रूमी की दो शादियाँ हुईं, जिनसे इन्हें दो बेटे और एक बेटी पैदा हुई थी. विनफ़ील्ड के अनुसार रहस्यवाद में रूमी की बराबरी कोई नहीं कर सकता. रूमी शम्स तबरेज़ को अपना मुर्शिद मानते थे और उनकी रहस्यमयी मृत्यु के बाद उन्होंने अपने दीवान का नाम भी अपने मुर्शिद के नाम पर ही रखा. रूमी की मसनवी दुनिया भर में सबसे ज़्यादा पढ़ी जाने वाली किताबों में शुमार होती है|
प्रमुख रचनायें
१. मसनवी
२. दीवान-ए-शम्स तबरेज़
रूमी की कविताओं में प्रेम और ईश्वर भक्ति का सुंदर समिश्रण है। इनको हुस्न और ख़ुदा के बारे में लिखने के लिए जाना जाता है।
- माशूक चूँ आफ़्ताब ताबां गरदद।
- आशक़ बे मिस्ल-ए-ज़र्र-ए-गरदान गरदद।
- चूँ बाद-ए-बहार-ए-इश्क़ जोंबां गरदद।
- हर शाख़ के ख़ुश्क नीस्त, रक़सां गरदद।
शम्स तबरेज की मुलाक़ात ने बदली जिंदगी
पहले ही एक शिक्षक और धर्मशास्त्री के रूप में अपनी पहचान बना चुके रूमी अब तक कई किताबों को लिख चुके थे. लेकिन उनकी जिंदगी को पढ़ने पर पता चलता है कि रूमी को इतना कुछ पाने के बाद भी खालीपन महसूस होता था, जबकि उनके कई सारे शुभचिंतक और शिष्य थे. वहां उनको चाहने वालों की कोई कमी नहीं थी. एक दिन रूमी की जिंदगी में ऐसा मोड़ आया, जब उनकी जिंदगी के मायने ही बदल दिए.
बात उस वक़्त की है जब एक दिन रूमी अपने मदरसे से निकलकर बाज़ार की तरफ निकले थे, तब उनकी मुलाकात उस वक़्त के महान दरवेश और सूफी शम्स तबरेज़ से मुलाक़ात हुई. जो लंबे समय से एक सूफी और अध्यात्मिक साथी की तलाश में थे. कहा जाता है कि एक दिन मौलाना रूमी घर पर अपने शागिर्दों के साथ बैठे हुए थे. उनके चारों तरफ किताबों का जमावाड़ा लगा हुआ था. और वह किसी किताब का अध्यन कर रहे थे, कि अचानक उसी वक़्त शम्स तबरेज़ सलाम करते हुए आकर बैठ गए. किताबों की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने रूमी से पूछा कि “यह क्या है?”
रूमी ने कहा, “यह वह चीज़ है जिसके बारे में आप नहीं जानते.” इतना कहना था कि तबरेज़ ने उन किताबों को आग के हवाले कर दिया. इतने में रूमी ने तबरेज़ से कहा, “ये क्या किया?” तो तबरेज़ ने जवाब दिया कि “यह वह चीज़ है, जिसको तुम नहीं जानते.” इतने के बाद वह वहां से चुपचाप निकल लिए और देखते ही देखते रूमी की आंखों से ओझल हो गए. उनके इस रहस्यमय कारनामे से रूमी बहुत प्रभावित हुए और शम्स-शम्स की रट लगाते हुए उनको खोजने निकल पड़े. आखिरकार उन्होंने कोन्या में शम्स तबरेज़ को ढूंढ ही लिया और वापस अपने साथ ले आए. उसके बाद रूमी ने शम्स से आध्यात्मिक शिक्षा हासिल की. और यहीं से रूमी की जिंदगी में बड़ा बदलाव आया.
शम्स के प्रशिक्षण के बाद वह पूरी तरह से सूफीवाद में रम गए. जब रूमी के शिष्यों ने उनकी ये हालत देखी तो वे शम्स से काफी नाराज़ हुए.
ऐसा माना जाता है कि आखिर में उनके किसी शिष्य ने उनको मौत के घाट उतार दिया, हालांकि इससे रूमी को गहरा धक्का लगा और वो अकेले में गम की जिंदगी गुज़ारने लगे. शम्स के साथ इस मुलाकात ने रूमी को मशहूर कर दिया था!