सुकून पाया है बे-कसी ने, हुदूदे-ग़म से निकल गया हूँ
ख़याले-हज़रत जब आ गया है तो गिरते गिरते संभल गया हूँ
कभी मैं सुबहे-अज़ल गया हूँ, कभी मैं शामे-अबद गया हूँ
तलाशे-जानां में कितनी मंज़िल ख़ुदा ही जाने निकल गया हूँ
हरम की तपती हुई ज़मीं पर जिगर बिछाने की आरज़ू में
बहारे-ख़ुल्दे-बरी मिली तो बचा के दामन निकल गया हूँ
मेरे जनाज़े पे रोने वालो ! फ़रेब में हो, ब-गौर देखो
मरा नहीं हूँ, ग़मे-नबी में लिबासे-हस्ती बदल गया हूँ
ये शान मेरी, ये मेरी क़िस्मत, खुशा मुहब्बत ज़ए अक़ीदत
ज़ुबां पे आते ही नामे-नामी, अदब के सांचे में ढल गया हूँ
ब-फैज़े हस्सान इब्ने साबित, ब-रंगे-ना’ते-रसूले-रहमत
क़मर मैं शेरो-सुखन की लय में अदब के मोती उगल गया हूँ