तेरी झालियों के नीचे, तेरी रहमतों के साए
जिसे देखनी हो जन्नत वो मदीना देख आए
कैसी वहाँ की रातें, कैसी वहाँ की बातें
उन्हें पूछ लो नबी का जो मदीना देख आए
ना ये बात शान की है, ना ये बात माल-ओ-ज़र की
वही जाता है मदीने, आक़ा जिसे बुलाए
रोज़े के सामने मैं ये दुआएं मांगता था
मेरा दम निकल तो जाए, ये समां बदल न जाए
तयबा के ए मुसाफिर ! तुम्हें देता हूँ दुआएं
दरे-मुस्तफ़ा पे जा कर तू जहां को भूल जाए
वो ज़हूरी यार मेरा, वही ग़मगुसार मेरा
मेरी क़ब्र पर जो आ कर नात-ए-नबी सुनाए