नात ए शरीफ़ : (अरबी – نعت) उर्दू और फ़ारसी में नात ए शरीफ़ (نعت شریف) : इस्लामी पद्य साहित्य में एक पद्य रूप है, Urdu Naat जिस में पैगंबर हज़रत मुहम्मद साहब की तारीफ़ करते लिखी जाती है। इस पद्य रूप को बडे अदब से गाया भी जाता है। अक्सर नात ए शरीफ़ लिखने वाले आम शायर को नात गो शायर कहते हैं और गाने वाले को नात ख्वां कहते हैं।
Me yad e baydaa ke sadqe Ae Kaleem
Par kahaa Un ki Kaf e Paa ka jawaab
Kya amal tu ne kiye us ka suwaal
Teri rahmat chaahi hain mera jawaab
Urdu Naat Ka Agaz
नात शेरों से बनती हैं। हर शेर में दो पंक्तियां होती हैं। शेर की हर पंक्ति को मिसरा कहते हैं। नात की ख़ास बात यह हैं कि उसका प्रत्येक शेर अपने आप में एक संपूर्ण कविता होता हैं और उसका संबंध नात में आने वाले अगले पिछले अथवा अन्य शेरों से हो, यह ज़रूरी नहीं हैं।
Dekh Rizwaan Dasht e Taiba ki bahaar
Meri jannat ka na paaye ga jawaab
Shor hain lutf o ataa ka shor hain
Maangne waala nahi sunta jawaab
Jurm ki paataash paate ahle jurm
Ulti baato ka na ho seeda jawaab
Par Tumhare lutf aare aagaye
De diya mahshar me bepursish jawaab
Ae Hasan mehw e Jamaal e Rooh e Dost
Ae Nakeerain is se phir lena jawaab
कोई उम्मीद बर नहीं आती।
कोई सूरत नज़र नहीं आती। ।
मौत का एक दिन मुअय्यन हैं।
नींद क्यूं रात भर नहीं आती। ।
लेकिन जैसे जैसे समय बीता ग़ज़ल का लेखन पटल बदला, विस्तृत हुआ और अब तो ज़िंदगी का ऐसा कोई पहलू नहीं हैं