शायरी शेर-ओ-शायरी या सुख़न भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित एक कविता का रूप हैं Urdu Shayri जिसमें उर्दू-हिन्दी भाषाओँ में कविताएँ लिखी जाती हैं। शायरी में संस्कृत, फ़ारसी, अरबी और तुर्की भाषाओँ के मूल शब्दों का मिश्रित प्रयोग किया जाता है। शायरी लिखने वाले कवि को शायर या सुख़नवर कहा जाता है।
आँखें खुली थीं सब की कोई देखता न था
अपने सिवा किसी का कोई आश्ना न था
यूँ खो गया था हुस्न हुजूम-ए-निगाह में
अहल-ए-नज़र को अपनी नज़र का पता न था
धुँदला गए थे नक़्श-ए-मोहब्बत कुछ इस तरह
पहचानती थी आँख तो दिल मानता न था
शेर – यह दो जुमलों (पंक्तियों) से बना कविता का एक अंश होता है जो एक-साथ मिलकर को भाव या अर्थ देती हैं, उदाहरण के लिए ‘बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे, होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे’ दो जुमलों का एक शेर है (अर्थ: ‘दुनिया मेरे लिए बच्चों का खेल है, रात-दिन यही तमाशा देखता हूँ’)
तुम पास थे तुम्हें तो हुई होगी कुछ ख़बर
इतना तो अपना शीशा-ए-दिल बे-सदा न था
कुछ लोग थे जिन्हें ये सआदत हुई नसीब
वर्ना यहाँ किसे सर-ए-मेहर-ओ-वफ़ा न था
तख़ल्लुस या तकिया क़लाम
यह शायर का अपने लिए चुना हुआ नाम होता है जो अक्सर ग़ज़ल के अंतिम शेर (मक़ते) में शामिल कर लिया जाता है, ठीक वैसे जैसे कोई चित्रकार अपने बनाए चित्र पर अपना नाम दर्ज कर देता है;
हर सम्त हो रहा था अँधेरों का अज़दहाम
शब कट चुकी थी और सवेरा हुआ न था
क्या क्या फ़राग़तें थीं ‘तबस्सुम’ हमें कि जब
दिल पर किसी की याद का साया पड़ा न था