उस का ख़िराम देख के जाया न जाएगा
ऐ कब्क फिर बहाल भी आया न जाएगा
हम कशतगान-ए-इशक़ हैं अब्रू-ओ-चश्म-ए-यार
सर से हमारे तेग़ का साया न जाएगा
हम रहरवान-ए-राह-ए-फ़ना हैं बिरंग-ए-उम्र
जावेंगे ऐसे खोज भी पाया न जाएगा
फोड़ा सा सारी रात जो पकता रहेगा दिल
तो सुब्ह तक तो हाथ लगाया न जाएगा
अपने शहीद-ए-नाज़ से बस हाथ उठा कि फिर
दीवान-ए-हश्र में उसे लाया न जाएगा
अब देख ले कि सीना भी ताज़ा हुआ है चाक
फिर हम से अपना हाल दिखाया न जाएगा
हम बे-ख़ुद उन महफ़िल-ए-तस्वीर अब गए
आइंदा हम से आप में आया न जाएगा
गो बे-सुतूँ को टाल दे आगे से कोहकन
संग-गरान-ए-इश्क़ उठाया न जाएगा
हम तो गए थे शैख़ को इंसान बूझ कर
पर अब से ख़ानक़ाह में जाया न जाएगा
याद उस की इतनी ख़ूब नहीं ‘मीर’ बाज़ आ
नादान फिर वो जी से भुलाया न जाएगा